शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

झारखण्डी के आंखों से

अलोका 
झारखण्डी के आंखों से 
मै देखा हुं दर्द रे
विकास दूर नजर आए,
बड़ी दूर नजर आए
जब बैठी उनके साथ
मन में उसके सपने आए
एक गांव था सबके
ओ अब खोने लगा है।
वोट देकर
हाय सब कुछ लुटने लगा है।
इस सरकार के भरोसे पे
सब सूखने लगा है।
भूल के जब गांव रे
जाती हूं देखने
मर मर के जी रहे हैं।
लुट रहे जमीन जंगल को
दिन रात दुआ मांगे
आदिवासी सबके वास्ते
कभी अपनी उम्मोदांे का
फूल न मुरझाए
झारखण्ड जब से सरकार के
 रंगों मों रंगा है।
गांव गांव में जनता रोने लगी है।
सबके प्यार भरे सपने
कहीं ये व्यवस्था छिन न ले
मन दुखी हो जाए

1 टिप्पणी:

Farid Khan ने कहा…

बहुत सटीक और समसामयिक।