शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

खाली है एक हवेली

- शाहिद अख्‍तर

खाली है एक हवेली

बिना किसी किराये के

शर्त बस इतनी है
...
किरायेदार अच्‍छे हों

भाषा प्‍यार की बोलें

रहें सुकून से

अमन और शांति से

झगड़े करें जरूर

मगर विचारों के

तलवार चलाएं शौक से

कि कोई हर्ज नहीं इसमें

जंग की भी इजाजत है

बस ख्‍याल यह रखें

जंग तारीक ताकतों से करें

तो फिर से मैं अर्ज कर दूं

मेरे दोस्‍तो

इंतजार है किरायेदारों का

कि बहुत जगह है

दिल की इस बोसीदा सी हवेली में

- शाहिद अख्‍तर

4 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

वीरान हैं आँगन

दिल के दरीचों का

कभी आना इस दरीचे में

कोई अपना बैठा है

आस का दीप जलाये



आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

अनुपमा पाठक ने कहा…

sundar rachna!

रंजना ने कहा…

वाह...खूबसूरत ख़याल...

पर ऐसा किरायेदार मिलना बड़ा मुश्किल है..

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह...खूबसूरत ख़याल...