दामिनी-ई-कोह: उतना लम्बा, हमारा इतिहास: आलोका जितनी लम्बी , हमारी नदियां उतना लम्बा , हमारा इतिहास जितने उंचे , हमारे पहाड़ उतनी उंची , हमारी संस्कृति जितने घंन...
गुरुवार, 25 जनवरी 2018
सरहुल
आलोका कुजूर
कैद है सरहुल
तारीख में
नज्+में कौन
सुनाए
बे तारीख खिला
सरई फुल
नज्+मे कौन सुनाए
लिख रही तकदीर
विकास के नाम
प्रकुति वैषिवक
की चाल
चल रहा साथ- साथ
प्रकृति, विज्ञान की बात
जब बजे नगाड़ा
अखड़ा में
मदहोस नृत्य और
गान
समझो सरई खिला
हंै
घरती हो गई मताईल
कैद में फगुआ
तारीख में
पलास हो गया
बेकार
कृतिम रंग में
रंगा फगुआ
भौजी को कौन
समझाए
टह-टही रंग लाल
अब
बदल दी अपनी चाल
रंग बिरगी रंगो
ने
फगुआ की कर दी
चार
नगाड़े की गुंज
आलोका
इस बार करम में
नगाड़े की गुंज
में वो दर्द था
खोये हुए लोगो की
खाज थी
उजडे हुए बस्ती
को पूकरता था
गायब हुए लोगो को
देता आवाज था
इस बार करम में
नगाड़े की गुंज
में वो वेदना थी
स्त्रियों के
व्यथा थी
आंगन में सन्नाटा
था।
विछडे लोगो को
पूकारा थी
इस बार करम में
नगाड़े की गुंज
में
कई सवाल थे
करम अपने लोगो
ढूंढता रहा
जावा को पूकारता
रहा
नगाड़े की गुंज
ने
ये लम्हा बीता मेरा
आलोका
29.06.10
चली थी, मन में
लिए गुस्सा और
प्यार दोनो
तब तक
जब तक
न देखी थी मैं
तुझे
न थी मन में चाहत
उस वक्त तक
रखी थी सोच कर
दिल में
न मिलूंगी तूझसे
जाने अनजाने
हो गयी मुलाकात
किसी मोड़ पर
थम गया था दिल मेरा
कुछ देर तक
और फिर
मिलने की चाहत दिल को तड़पाने लगी
वो दिन एहसास
एक -एक पल
मेरे लिए थम सा गया।
बिना सोचे चल दी
पर
` मेरी निगाहे पूरे रास्ते
तुझे तला”ाती रही।
आंखों की तलाशी के साथ
दिल बेवाक् बैचन हो गया।
आपने साथ के साथी के रास्ते
. भी खो दिया
मन की बैचनी को थामने
चली गयी उस देहरी तक
जहां एक सनाटा भरा था।
निराश निगाहे
व
वापसी कदम
देहरी पार करते ही
. उसका फोन आया
इंतजार तो कर ले-की बात कह डाला।
मै इस इतजांत को पल पल जी रही थी।
उनसे मिलने की तड़प बढ़ रही थी।
नहीं पता कि उस ओर मैं खींचे
क्यों जा रही थी?
उतना लम्बा, हमारा इतिहास
जितनी लम्बी,
हमारी नदियां
उतना लम्बा,
हमारा इतिहास
जितने उंचे,
हमारे पहाड़
उतनी उंची,
हमारी संस्कृति
जितने घंना,
हमारे जंगल
उतना घनी,
हमारा विशवास
जितने कोमल,
हमारे पलाश
उतनी मिटठी,
हमारी राग
जितने फूटे ,
हमारे झरने
उतनी सुन्दर ,हमारी तान
जितने नगाड हमारे
संग
उतनी उंचा हमारे एलान
जितने थीरके पांव
हमारे
उतना एकता का है भाव
जितने रंग है फुलो मे
उतना मिट्टी के है खुशबु
जितनी वाणी हमारे साथ
उतनी भाषा का है
प्रभाव
जितना लम्बी,
हमारी पगड़डी
उतनी लम्बी हमारा
संघर्ष
रिची बुरू
आलोका
गांगो] जब जाती थी सब्जी बेचने
रिची बुरू के तलहटी में
कितने कितने सदियों तक
जमाये रखा था अपने को
एक सदी का इतिहास रच रखा था
इसी रिची बुरू के हर टोले में
कई छोटे बडे संधर्’ा के साथ
सब्जी के कई प्रकार और
कई प्रकार के समुदाय के बीच
एक औरत का श्रम बराबरी का दर्ज
कराया था इसी तलहटी में
याद है गांगो जब कोइल
साजबाज के साथ सावन में
इतराती थी हरियाली के आगे
फासले को कम कर जाता था
तेरा यह श्रंगार
उतना ही सवार लाती थी
तेरे टोकरी में हरे हरे सब्जीयां
वही तेरे कानों के फूल और
हाथों के बाला में उकेर देती
खोपा में उसी मौसम के फूल
और खायेचा में बांध ले जाती थी
लम्बे इतिहास अपने गांव
हीरामणि
आलोका
हीरामणि
हूल के पन्नों
से ग़ायब हो
इतिहास के
रास्ते तुमने भी चला था।
क्यो?
जब पूस में अपने
को सजते
रंग बदलती मौसम
में
तेरा ओढक कोसो
दूर
सघर्ष के रास्ते
फुटकल गाछ ही तो था सहारा ।
हीरामणि तेरे
शौर्य की गाथा
ग़ायब कर दिए है
या हो गया
मै नही जानती
जानती बस इतना
तेरे तीर कमान
से निकले
हूल
चारो घने जंगल
में
आग बन पसर जाते
थे।
हमने देखी थी
तेरी वीरता के
जंग को
बैठ कारो के
बहते धार में
जब निकलती थी
झुंड
सरई के गांव से
हीरामणि
उस तीर की धार
को
आज फिर इतिहास
पुकार रहा
वीरता के गांव में
चलोगी हीरामणि
हरमू के गांव
देखा आये कुटकु
के लोग को
देख आये देख आये
दामोदर की तट को
जहा
कभी भेदी
कमर में बांध
चुनोती भरे
इतिहास को।
दुर्गावती
आलोका
सुना तुमने
चीख चीख जगा रही
हमसब को
दुर्गावती
हे भारत के मुल
निवासी
घेर लिया आज
श्ॠ्ओ को
अब तो जागो भारत
के वीरो
उलगुलानी है
वक्त
मांग छोड़, मोह छोड़
वीरो बनो बीर बनो
भटक क्यो गये
राहो से
यह वन तुम्हारा
है
क्यो अनदेखी कर रहे
ये धरती तुम्हरी है
बुंद बुंद. जल
तुम्हारा
जोरो से पुकार
रहा
याद करो बिरसा
के वाणी
उलगुलान आग से धरती
है जगमगयीं
बासिंया चरपोटा भी राजा थे
चल कपट से मारा
था
बस्तर कि जिवनी
याद करो
शोषित किसपे हो रहा
भारत के मुल
निवासी
अब तो होश संभालगे
वक्त नही सोने
का
हाथो मे हथियार
लो
रणभूमि मे कुद
कर
आज तुम दहाड दो
वंशज हो रानी
दू्र्गावती का
हर जगह फहरादो
परचम
अब भारत के मुल निवासियो
सुन लो कहना तुम
बिरसा का
दिवाने को जीत है निश्चित
ठान लो जागो सब
नही तो गुलामी
करोगे जी भर कर
जीना सिख लो अपने लिये है।
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