गुरुवार, 25 जनवरी 2018

रिची बुरू

आलोका 

गांगो] जब जाती थी सब्जी बेचने
रिची बुरू के तलहटी में
कितने कितने सदियों तक
जमाये रखा था अपने को
एक सदी का इतिहास रच रखा था
इसी रिची बुरू के हर टोले में
कई छोटे बडे संधर्ा के साथ
सब्जी के कई प्रकार और
कई प्रकार के समुदाय के बीच
एक औरत का श्रम बराबरी का दर्ज
कराया था इसी तलहटी में
याद है गांगो जब कोइल
साजबाज के साथ सावन में
इतराती थी हरियाली के आगे
फासले को कम कर जाता था
तेरा यह श्रंगार
उतना ही सवार लाती थी
तेरे टोकरी में हरे हरे सब्जीयां
वही तेरे कानों के फूल और
हाथों के बाला में उकेर देती
खोपा में उसी मौसम के फूल
और खायेचा में बांध ले जाती थी

लम्बे इतिहास अपने गांव

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