आलोका
इस बार करम में
नगाड़े की गुंज
में वो दर्द था
खोये हुए लोगो की
खाज थी
उजडे हुए बस्ती
को पूकरता था
गायब हुए लोगो को
देता आवाज था
इस बार करम में
नगाड़े की गुंज
में वो वेदना थी
स्त्रियों के
व्यथा थी
आंगन में सन्नाटा
था।
विछडे लोगो को
पूकारा थी
इस बार करम में
नगाड़े की गुंज
में
कई सवाल थे
करम अपने लोगो
ढूंढता रहा
जावा को पूकारता
रहा
नगाड़े की गुंज
ने
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