आलोका
29.06.10
चली थी, मन में
लिए गुस्सा और
प्यार दोनो
तब तक
जब तक
न देखी थी मैं
तुझे
न थी मन में चाहत
उस वक्त तक
रखी थी सोच कर
दिल में
न मिलूंगी तूझसे
जाने अनजाने
हो गयी मुलाकात
किसी मोड़ पर
थम गया था दिल मेरा
कुछ देर तक
और फिर
मिलने की चाहत दिल को तड़पाने लगी
वो दिन एहसास
एक -एक पल
मेरे लिए थम सा गया।
बिना सोचे चल दी
पर
` मेरी निगाहे पूरे रास्ते
तुझे तला”ाती रही।
आंखों की तलाशी के साथ
दिल बेवाक् बैचन हो गया।
आपने साथ के साथी के रास्ते
. भी खो दिया
मन की बैचनी को थामने
चली गयी उस देहरी तक
जहां एक सनाटा भरा था।
निराश निगाहे
व
वापसी कदम
देहरी पार करते ही
. उसका फोन आया
इंतजार तो कर ले-की बात कह डाला।
मै इस इतजांत को पल पल जी रही थी।
उनसे मिलने की तड़प बढ़ रही थी।
नहीं पता कि उस ओर मैं खींचे
क्यों जा रही थी?
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