आलोका
हीरामणि
हूल के पन्नों
से ग़ायब हो
इतिहास के
रास्ते तुमने भी चला था।
क्यो?
जब पूस में अपने
को सजते
रंग बदलती मौसम
में
तेरा ओढक कोसो
दूर
सघर्ष के रास्ते
फुटकल गाछ ही तो था सहारा ।
हीरामणि तेरे
शौर्य की गाथा
ग़ायब कर दिए है
या हो गया
मै नही जानती
जानती बस इतना
तेरे तीर कमान
से निकले
हूल
चारो घने जंगल
में
आग बन पसर जाते
थे।
हमने देखी थी
तेरी वीरता के
जंग को
बैठ कारो के
बहते धार में
जब निकलती थी
झुंड
सरई के गांव से
हीरामणि
उस तीर की धार
को
आज फिर इतिहास
पुकार रहा
वीरता के गांव में
चलोगी हीरामणि
हरमू के गांव
देखा आये कुटकु
के लोग को
देख आये देख आये
दामोदर की तट को
जहा
कभी भेदी
कमर में बांध
चुनोती भरे
इतिहास को।
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