बुधवार, 8 जुलाई 2009

सांवरी-2

समुद्र मंथन की कथा,
विवरण और विस्तार से
नहीं मैं सुपरिचित
अमृत - कलश
देव - दानव संघर्ष
विष्णु-मोहिनी रूप का
नहीं मैं गवाह
किन्तु
पुराणकारों ने जिसे छुपाया,
न गाया गीत
जिसका कवियों ने
समुद्र-मंथन से ही निकली
वह अमूल्य निधि
तेरे चेहरे का नमक
........................
जिसका मैं गवाह हूँ
रणेन्द्र
जिसे
देव वरूण ने
स्वयं अँजुरी भर-भर
न्यौछावर किया
तुम पर
तुम्हारे जामुनी रंग पर
और स्वयं ही धन्य हुए
तुम्हारी निगाहों से
नाक की तीखी कोर से
पसीने की बूँद से बिखरता
नमक का एक कण
शत-शत अमृत कलशों पर
भारी है
हे साँवरी !

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