अशोक रावत की ग़ज़लें
हाँ मिला तो मगर मुश्किलों से मिला,
आईनों का पता पत्थरों से मिला.
दोस्ती आ गई आज किस मोड़ पर,
दोस्तों का पता दुश्मनों से मिला.
मौलबी और पंडित घुमाते रहे,
उसका पूरा पता क़ाफ़िरो से मिला.
ढूँढ़ते ढूँढ़ते थक गया अंत में,
मुंसिफ़ों का पता क़ातिलों से मिला.
अड़चनें ही मेरी रहनुमा हो गईं,
मंज़िलों का पता ठोकरों से मिला.
जाने क्या लिख दिया उसने तक़दीर में,
मुझको जो भी मिला मुश्किलों से मिला.
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