मंगलवार, 21 मई 2013

शर्म की तस्वीर




सिर्फ गोली मारनी चाहिए थी वहां बस जुर्म की तहरीर लिख दी गयी 
हर अबला के खाते में सर झुका कर जीने की तकदीर लिख दी गयी।

शर्मसार है इंसानियत हिंदुस्तान की कुछ हैवानों की हैवानियत से 
चलती बस को बना कर आइना वहशीपन की तस्वीर लिख दी गयी।

दहेज़ की फ़िक्र में कतराते थे लोग अभी तक बेटियों की पैदाईश से 
अब कुछ और वज़ह हो जाएगी, आज कुछ ऐसी नज़ीर लिख दी गयी। 

ए बहनों आहिस्ता से निकलना अब शैतानों के शहर में संभल के
कि जाने कब पढ़ने को मिल जाये जो हर गली में एक पीर लिख दी गयी।

अब न चहकेगी कभी वो जो आँगन में चहचाया करती थी रातदिन 
उड़ गयी सोनचिरैया आबरू देके, कहानी नहीं चुभता तीर लिख दी गयी।

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