दामिनी-ई-कोह
रिची बुरु
गुरुवार, 9 मई 2013
एक एहसास ....
संध्या सिंह
जब ...
एक दूसरे के बीच से
गुज़र कर ....
हमारी उंगलियाँ
कस जाती है ,
तो जड़ जाते हैं
ताले
ज़ुबान को ,
बस........
उंगलियाँ बतियाती है
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