सोमवार, 13 मई 2013

बेरोजगार हूँ, इस तंत्र से परेशान हूँ


बेरोजगार हूँ, इस तंत्र से परेशान हूँ
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खाली हूँ
और लोगों को पढ़ने का
काम करता हूँ
आसन्न नींद में डूबे लोगों को
परेशान करता हूँ
मौके - बेमौके
पीड़ितों के दुःख सुख में
शरीक होता हूँ
पर यह सब कोई
काम तो नहीं
इसलिए पूछने पर
खुद के बारे में
कहता हूँ -
बेरोजगार हूँ
इस तंत्र से परेशान हूँ
और बदलाव चाहता हूँ
इस शोषण - परक
भेदभाव - मूलक
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे
तंत्र से
पर यह कोई काम तो नहीं
इसलिए बेरोजगार हूँ
बेरोजगार हूँ -
कि होती नहीं
चापलूसी मुझसे
नेताओं की, अफसरों की
ठेकेदारों की, साहूकारों की
जो हमारे भविष्य को
अपने पैरों तले
रौंदते रहते हैं
और अपमानित होता रहता है
हमारा स्वाभिमान
बेरोजगार हूँ -
कि होती नहीं
बेईमानी मुझसे
तोडा जाता नहीं
अपनों का विश्वास
बेरोजगार हूँ -
कि चाहता हूँ
अपनी मिट्टी से
लोगों का जुडाव
और सरकार की भी
जो इन दिनों
विदेशी कंपनियों
और उनकी पूंजी देश में
लाने की जोड़-तोड़ में ही
अपना सारा समय
और काबिलियत
खर्च कर रही है
उन्हें मालूम नहीं
हमारी मिटटी की उर्वरता
उसकी मोहक खुशबू
हमारे अपने लोगों का हूनर
आजकल हमारी सरकार को
सभी विदेशी चीजें
अच्छी लगती हैं
विदेशी सरकारों की
हां में हां मिलाना भी
बिना यह सोचे
कि अपने देश का भविष्य
किधर जा रहा है
और पैदा कर रहा है
मुझ जैसे लाखों-करोड़ों
बेरोजगारों की फ़ौज
अकसर लोग पूछते हैं
बसों में, ट्रेन में
चाय के नुक्कडों पर भी
कि मैं क्या करता हूँ
मैं कहता हूँ उनसे
लिखता हूँ - विद्रोही कवितायेँ
व्यवस्था से चिढ़कर - विरोध में
पढता हूँ - वाम साहित्य
बाट जोहता हूँ
सृजन की
पर सृजन के लिए
पुराने का, सड़े-गले का
मिटना जरुरी है
नई कोपलें निकले
इसके लिए मिट्टी में
ख़ाक होना ज़रुरी है
फिर लोग कहते है
यह सब तो ठीक है
पर काम क्या करते हो ?
तब मैं फिर से
आसन्न सन्नाटे में
आ जाता हूँ
और बेशर्मी से
कहता हूँ -
न मैं डाक्टर
न इंजिनीयर
ठीकेदार भी नहीं
न ही सरकारी मुलाजिम
कोई नेता भी नहीं
न किसी का पीए
बस बेरोजगार हूँ
बेरोजगार हूँ 

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