शुक्रवार, 30 मार्च 2018

बूढा बूरू (Aloka kujur)


विनती सुनाने दरार पडे पैरो से
आती हूँ  गांव के पगडडी के सहारे
आंधी तुफानो से बचाया 
अब बचा ले
दिकू की कुदृष्टि से
तेरे काया अब छोटे होते जा रहे है। 
ज़िन्दगी के तूफान उफान पर है
मौत मंडराते गांव पर
साया खोजती दरार पैरो से
कही ढलान नही मिलते 
मिलते है खबर संगी के 
समाप्त जीवन की 
खबर
खतरो के बीच 
जीवन तेरे मेरे 
बचाने के लिए 
ऊंचा उठना होगा
इसी काया से इसी 
तलहट्टी के कोने से

लिली ईस्टर


आलोका

पवित्र जल लिए मुलाकात मां से
लिली के इस गुच्छे लिए
कर देना हवा और मन को भी पवित्र
तैरती सुगंधित  हवा मे 
नवचन्द्रमा से जोग करा आना
नवविधान के रूप मे 
धरती मां मिल आना। 
मृतोत्थान  मात्र वे  
चमकते प्रकाश के बीच 
चिराग हमेशा बनना
इस ऋतु के बीच
प्रेम का संवाद से ढक लेना। 
तेरे लहू की सूली पर 
बंसत पूर्णिमा के बीच
मानव मन भूखा है 
प्रेम और सन्हे के लिए
धरती मे आज भी जीवत है
संकल्प तेरे लिए
हम मानते है लहू मे 


विश्वास भी  मन मे

गुरुवार, 29 मार्च 2018

डूम्बारी बुरू (Aloka Kujur)

डूम्बारी बुरू
इतिहास के पन्नों में दर्ज
बसते है डूम्बारी बुरू नाम जहां 
संघर्ष की साँस
हजारों अरमान पल बढे इस मिटटी में
कुछ जीत गये कुछ हार गये
कई नाम अमर हो गये। 
खाज है डीह में आज भी
निशान है। बिरसा के लहू का
मौजूद है संघर्ष की महक
तान उलगूलान के मौजूद
खीचती मुटठी, खीचते तीर के कमान
नहीं रूकती कोईल
टकराये आवाल नगांडे के
झूम उठती है जंगल
हर एक साज में

बुधवार, 28 मार्च 2018

शब्दकार ( गीत ) आलोका





शब्दकार की बस्ती में ---

बहती सरिता चीत्कार करे
शांति नहीं अब घर में देखो 
औरतो का आपमान मिले -2



कही सीता कही द्रोपती  

फातिमा पर वार हुए 
मर्द की इस दुनिया मे  देखों 
 आग्नि से गुजर रहे 
क्ही चिर हरण, कही हत्या सीमा से तों पार हुए .......  
फूटे स्वर एकता की 
औरतो को सम्मान मिले 
बहती सरिता गुजर रही---- 
 शब्दकारो की बस्ती से 
एक ही शब्द सब से कहती 
 हिंसा  तूम दूर करो को 
माता मरियम ने दिया है 
शांति के बदलाव को 
मदर टेरेसा हमे  दी है --- 
प्रेम  सारे पाठ को 
अब तो शब्दकार की बस्ती में 
ये सारे साज है 
उठो जागोए बदला दो अबए अपने  इस संसार को
स्त्री हिंसा नही सहेगे 
कह दो एक बार तुम 

रविवार, 25 मार्च 2018

हीरामणी

आलोका कुजूर
 हीरामणि
हूल के पन्नों से ग़ायब हो
इतिहास के रास्ते तुमने भी चला था।
क्यो?
फुटकल के गाछ 
जब पूस में अपने को सजते 
रंग बदलती मौसम में
तेरा ओढकन्न कोसो दूर सघर्ष 
के रास्ते पर गाछ ही तो सहारा था।
हीरामणि तेरे शौर्य की गाथा 
ग़ायब कर दिए है
तेरे तीर कमान से निकलते थे
हूल
चारो घने जंगल में 
आग बन पसर जाते थे।
हमने देखी थी 
तेरी वीरता के जंग को
बैठ कारो के बहते धार में
जब निकलती थी झुंड
सरई के गांव से , नही जान पाया थी हीरामणि 
उस तीर की धार को
आज फिर इतिहास
पुकार रहा वीरता के गांव को
चलोगी हीरामणि हरमू के गांव
देखा आये कुटकु के लोग को
देख आये दामोदर की तट को
की भेदी है हमने 
एक और इतिहास को।।

शनिवार, 24 मार्च 2018

मरांग बुरू

किसानो की मौत  से कंपा  मेरा मन 
aloka kujur 
साझी वलिदान की विरासत हो तूम
दहकती धरती की विरासत हो तुम
लाल माटी की चाहत हो तूम

पलाश के संग लाल माटी के रंग
रणभूमि गाँव की इफाजत हो तूम
सब के सब तेरे दामन मे 
समेटे रखे है ना मरांग बुरू
जब भी तडपती हूं 
थाम कर जब याद कर लेती
चारो ओर चीत्कार सुन लेती
कई कई बरस से अटूट विश्वास 
आज भी है मन मे
मैं खड़ी आज भी
मेरे विश्वास को नही 
ना तोडो़गे मरांग बुरू
शोषक सपने दिखाते है
विकास के धुल उडाते है
धुल मे गुम हो रहे किसान के जीव
चिड़िया कौएं इन बातों से 
छोड गये मेरे अँगना, मेरा खेत
पपडी पड़ गये खेतो मे
पानी दो गे ना मांरग बुरू
हर बरस आती हूँ
एक लोटा पानी लेकर
धरती की रक्षा की कामना मन मे लिए। 
इस कामना को पूरा करोगे 
मेरे खेतो को पानी दो गे ना मरांग बुरू

शिशिर दा (ओस की बुंद)




aloka 
तेरे शब्दकारो की बस्ती
में नही गूँजते 
कलमी साग, ठेपा साग 
के स्वाद के गीत।
बदल दिए न आपना राग
जहाँ से चले थे ,बदलने दुनिया
उस दुनिया मे चकोड के गीत सुने है क्या?
तेरे शब्दकरो की बस्ती में 
किसे बुला रखे है। 
देख रही मैं 
शिशिर बिहीन धरती 
लौटने का इंतजार बस कर रही

दा चले थे मडुवा बांध 
खो दिया न पूरी धरती से आज
निकाला था एक दिन 
पोटली में बंध
नही लौटा वो मड़वा
फिर कभी गाँव
लोग मानते है आज भी
एक दिन बदलेगी दुनिया 
और शिशिर पानी फिर भीगा देगी
मेरा आँगन मेरा ठाव