ये पश्चताप है या विजय उल्लास
ऐ रे सखी
अब ये काजल पाउडर
मुझे बिल्कुल नहीं सुहाते
मेरे चेहरे पर छिड़के तेजाब
के छींटे
कहो न
किसी पाउडर से
छुपेंगे
किस मेकअप के पीछे
मैं छुपा सकूंगी
उनके गुनाह,
ऐ रे सखी
मुझे मुंह चिढ़ाते हैं ये
ब्यूटी पार्लरों के दीवार
मेरे क्षत-विक्षत
हो चुके चेहरे
और
मर चुकी
मेरी गरीमा,मेरा सम्मान
मेरा आत्मविश्वास
कुछ भी तो नहीं लौटा सकते,
ऐ रे सखी
फिर क्यों
बना लिए हैं बाजार ने
सारी महंगी चीजें
मेरे ही साजो श्रृंगार के
कि
चुल्हे में झौंसा मेरा मुंह
किसी को न दिखे
कलाइ्र्रयों पर
गर्म चिमटे की मार
छिप जाए
भरी चुडि़यों की
खूबसूरती में
और
भागना जो चाहूं कभी
इस जिल्लत से दूर
तो मेरे पैरों के पायल
रूुन-झुन-रून-झुन कर
मोहल्ले वालों को जगा दे
ताकि
दूर जाने से पहले
पकड़ ली जाउ
फिर
डाल देने को उसी कैद में
जहां
आर्थिक स्वतंत्रता न देकर
बना दी जाती हूं
मैं अपाहिज
ताकि
मैं मांगती रहूं ताउम्र भीख
अपने जीने-खाने को
और
जीती रहूं जिंदगी भर
किसी के सहारे
बंद कर दी जाती हैं जहां
मेरी जुबान
ताकि
मैं उनके इशारे पर
चलती रहूं आखें बंद कर
चुपचाप
ऐ रे सखी
सुनो न
कि
सारे ग्रंथ-पुराणों ने भी
तो
इसे ही नारी का
श्रृंगार बता दिया है
कि मैं बना दी गर्इ
हूं अब देवी
देखो न ये कैसे
उन्हीं बाजार की चीजों से
कर मेरा सोलह श्रृंगार
कैसे मुझे पूजते हैं
ऐ रे सखी
मैं देवी बनकर सोच रही हूं
ये समाज का पश्चताप है
या
विजय उल्लास, क्या है यह?
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