सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

दर्द

Jacinta Kerketta Ranchi 

दर्द

मैं आंगन में बैठा था
कि आकर पुलिस
उठा ले गई मुझे
मैंने लाख कहा 
कि मैं वो नहीं 
जो आप समझते हो
उन्होंने मेरी एक न सुनी
और
बना दिया मुझे माओवादी,
मैं याद करता हूं 
अपनी जवानी के दिन
कैसे मैंने भूखे दिन गुजारे
रात काटी कच्ची भूमि पर लेटकर
हथकरघा से कपड़े बनाते हुए
देखा था उन पुलिसवालों ने भी
मुझे मेरे गांव में
जिनके ऑर्डर पर 
मैं गमछे बनाता था
पर फिर याद आता है 
वो टेबो थाना 
कैसे सफेद कागज पर 
पिटते हुए 
लिया गया मेरा हस्ताक्षर
और कोर्ट में 
बना दिया गया
आम ग्रामीण से एक नक्सल
अपनी जीवनभर की
सच्चाई और सरलता 
के बाद
आज मैं देखता हूं
अपने सीने में डंडे के दाग 
और
आंखों में आक्रोश की आग
सोचता हूं बार-बार
कैसे मेरे माथे पर बांध कर 
माओवाद का सेहरा
वो लूट ले जाएंगे 
मेरी ही नजरों में मेरा सम्मान
ताकि मैं छोड़ कर चला जाउ
जंगल में 
दूर तक पसरी
अपनी जमीन, अपने खेत-खलिहान
ताकि वो बड़ी आसानी से 
लूट सके मेरा अस्तित्व
मेरी विरासत और 
मेरे पूर्वजों की धरोहर।।

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