गृहस्थी
आलोका कुजूर
महत्वपूर्ण जगह है मिल जाते है सबके एक साथ
कभी दु: ख तो कभी सुख
आंगन मे खिलखिलाते
कभी बरस नही होता कभी तारीख नही होती
जीवन गजब का है
जहाँ
होती है रात और दिन
यही है जीवन यहाँ
बार बार पोछ लेती है आंचल
भीगी हाथो को
मां से बंधा एक कैसे
सबके हाथो में
कुछ गम को पी लेते है
मुस्कान बांध कर
आंसू छलक भी जाए तो
जी हलका का एहसास भरकर
ये डोर है बडी़ संगीन रहस्यमय
धो लाती है जहाँ औरत मन के सारी बर्तन
गृहस्थी है जहाँ मिलता है
अपनो का साथ हर पल
मत कहना ये झंझट है
गुजर के जाना हम सबको है
कुछ सपने सो गये तुमको देखकर
कुछ छोड भाग गये हमसे ओकता कर।
चलते है जीवत और याथर्थ
घर के आंगन
चाल यही है गृहस्थी के जीवन भर
थाम हाथो को चलता है सब मिलकर
हर मुहिमों मे बांट लेते है
हमदर्द
जगह एक ही है सबके लिए
फिर बारिश के साथ सावन छलके।
हरियाली के आगे मन बहके
जी उठता है मन सबका
कि हर बरस निकला कैसे
विवाह बेटी कि गृहस्थी है प्रवेश कराती।
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