शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

फांसी टुगरी (Aloka Kujur)

फांसी टुगरी

धोडे के पैरो से उडाते धुल
टोला टोला छः छः कोस
टुगरी के ई कोह से उ कोह तक
धुल पत्ता से ढके आंगन
मौजूद है, गवाह है
चीता पच्चो की लूटती जमीन पर
गोतिया का पहरा  कब्जा ही तो था
तिलमिलाती बेटी फसल बो कर
शहर कमा आती।
नही काटा अपने फसल को
कनकनी रातों मे भी
पोवाल नही लाया घर
रात भर जलती रही 
चूल्हा चीता पच्चो के
भीतर बाहर होते लोग
बस्ती मे कोना कोना घर से
धुआ को चांदनी रात मे निहारते सब थे
कार्तिक की जाड़ा भूख के आगे कम थे।
संघर्ष टुंगरी के हर घर मे
जस का तस
किसान बेटी  के ललाट पर

दम अभी भी है कल भी था।

बेटी (aloka Kujur)

बेटी
पांच बेटी की मां
गांदूर टकटकाई पूना के बेटे निहार 
इच्छा के छन को मन की र्दद लिए
बेटे ना होने का दुख खूद को कोसती 
खेतो में हल कौन चलाएगा बोल हलका 
मन को कर लेती 
बुढापे में कमाकर कौन खिलाएगा 
अंतिम संस्कार  तक कौन होगा
जैसे सवालो से मन भरी चेहरे में उदासी के पल
हर घर से पूछते है बच्चों के हाल
“ाब्दों मे व्यर्थ और आखों नम
स्वर में उदासीता के जबाब होते
समाज के समक्ष कुछ बोलकर 
बदलाव के धुन कानों में सुनते रहे
अंदर घरों में वही निमय
जरूरत ने दामन को आजाद किया
म”ाीनी युग ने बेटी को पहचांन दी
घर की चाहत ने सम्मान पर कसक
चाहत की थी चाहत बदलाव की थी 
बदलते समाज स्वर और बढ़ते भेद ने 
कसौटी पर बेटी को जगह दिया पर आजादी छिन्न ली 
संस्कार वही मन की चाहत उसकी अकेले नहीं 
सस्ती श्रम और सेवा के आगे 
दौड लगा रही लिंग भेद के हवा
बेहतर और चाहत के बीच 
परम्पराओं के धीरे हुए आज भी है बेटी 

शाम (Aloka Kujur)

आज की शाम मेरे लिए अनोखा रहा।
किरण का सो जाना मेरे लिए सुकून रहा।
लौटती भीड मे खोया मन मेरे लिए आनमोल रहा।
मुस्कुराते चांद के साथ एक पल और रहा।
आंगन मे चांद का महकना कुछ और रहा।
ह्मदय मे हवा का एहसास कुछ और रहा।

जीवन मे हर शाम कुछ कहता रहा
दीया लिये भाभी अगली मनत को तैयार रही।
शोर इतना की मनते से बडी डीमांड हुई
शाम की चाय का नजारा ही कुछ और रहा।
पलको मे यादे थी शमा को ओर बंध रहा।
जल रही है बाती घरो मे छाया कोई ओर रहा।
पल भर की तन्हाई और खो जाता ये जमाना रहा।

शाम के इस पहरे दार से जमाने से कह रहा।
हाथो मे लिए चल रहे है मन की कौन सुन रहा।
जहाँ मे शाम एकलौता है देखो कौन इसे बांट रहा।
बादल रौशन है आज कि
 कल कुछ नाराजगी कुछ और रहा।
आज की शाम मेरे लिए अनोखा रहा।
किरण का सो जाना मेरे लिए सुकून रहा।
लौटती भीड मे खोया मन मेरे लिए आनमोल रहा।
मुस्कुराते चांद के साथ एक पल और रहा।
आंगन मे चांद का महकना कुछ और रहा।
ह्मदय मे हवा का एहसास कुछ और रहा।

जीवन मे हर शाम कुछ कहता रहा
दीया लिये भाभी अगली मनत को तैयार रही।
शोर इतना की मनते से बडी डीमांड हुई
शाम की चाय का नजारा ही कुछ और रहा।
पलको मे यादे थी शमा को ओर बंध रहा।
जल रही है बाती घरो मे छाया कोई ओर रहा।
पल भर की तन्हाई और खो जाता ये जमाना रहा।

शाम के इस पहरे दार से जमाने से कह रहा।
हाथो मे लिए चल रहे है मन की कौन सुन रहा।
जहाँ मे शाम एकलौता है देखो कौन इसे बांट रहा।
बादल रौशन है आज कि
 कल कुछ नाराजगी कुछ और रहा।