यह कविता शाहिद अख्तर की लिखी कविता हवेली पर प्रतिक्रया हैं
लगा है पहरा हवेली में
तैनात हरा, गैरूवा झण्डे के संग
चारों ओर शब्दों की वार
जंग है किसी के दिल में
तो जूनन भी उसी के पास
दोनो है माटी के लाल
रंग लाल से हो रहा प्यार
सर जमीन के टुकडे
बांट रहे
उपरवाला के नाम
न वहां राम रहेगा
न रहीम
इंसानियत नहीं
राजनीति
बांट रहीं जमीन
लगा है पहरा आपकी हवेली पर
लगा है पहरा हवेली में
तैनात हरा, गैरूवा झण्डे के संग
चारों ओर शब्दों की वार
जंग है किसी के दिल में
तो जूनन भी उसी के पास
दोनो है माटी के लाल
रंग लाल से हो रहा प्यार
सर जमीन के टुकडे
बांट रहे
उपरवाला के नाम
न वहां राम रहेगा
न रहीम
इंसानियत नहीं
राजनीति
बांट रहीं जमीन
लगा है पहरा आपकी हवेली पर
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