सोमवार, 4 जुलाई 2016

दर्दे दिल की दास्तां (Naushad Alam )



दर्दे दिल की दास्तां 
बन गया हूँ
गमे दिल का हाल
कोई मुझसे पूछे
मुरझाये हुए फूलों का
गुलिस्तां बन गया हूँ
राहे इश्क में 
क़दम दर क़दम
मिला ज़ख्म ऐसा
सिसकियों में जीने का
वास्ता बन गया हूँ
वफा ए इश्क में
हर घड़ी हर पल
मिला इनाम ऐसा
जीते जी मौत से 
रिश्ता बना लिया हूँ
अब तो लोग ये कहने लगे हैं
मैं हूँ बीमार
मुझको है दवा की दरकार
इश्क का है ये कैसा इम्तेहान
जिंदगी भर के लिए
हकीमों का दासता बन गया हूँ

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