बुधवार, 27 अगस्त 2014

जाने क्यूँ प्यार ना मिला ,


जाने क्यूँ प्यार ना मिला

जाने क्यूँ फूल न खिला



जाने क्यूँ उनको मुझसे  
हर क़दम पे था गीला। 

खाब जो देखे थे हमने  

क्यूँ नहीं पुरे हुए।
वो मेरे होकर भी अब तक 

क्यूँ नहीं मेरे हुए
एक ही छत के निचे हम क्यूँ 

हैं अधूरे और बँटे, ज

बाक़ी कुछ भी ना रहा
फिर क्यूँ रह गया सिलसिला।
स्म से क्यूँ जां जुदा 

वक़्त से 


लम्हे कटे।
 
प्यार करने से शायद 

सब को मिलता ये सिला।

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