जीते जी गर हुझसे मीठी बातें ना कर सके ,
बाद मरने के मेरे तुम ,
अश्क़ बहाओ भी तो क्या।
हर पल ये एहसास होता है के मैं तो तन्हा हूँ ,
द मरने के मेरे तुम पास आओ भी तो क्या।
अपने
बा वीराने में एक दिन
चुपके से बहार आई
,
जीने का मक़सद देकर वो
मुझको जीना सिखलाई।
लना था ,
तप्त रेत मेँ भी कांटे थे
पर मुझको तो
पर मुझको तो
बाद मरने के मेरे तुम खुशी में शामिल हुए तो क्या।
शम्मा बनकर महफिल में , मुझको तो बस
जचलना था।
बाद मरने के मेरे , चारागर बनके आओ तो क्या।
जीने मरने की कसमों के संग मेरे तो जुड़ गए ,
१८/१०/२००८
बाद मरने के मेरी तस्वीर से प्यार करो तो क्या।
उत्तम पाल
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