मंगलवार, 26 अगस्त 2014

जीते जी गर हुझसे मीठी बातें ना कर सके


जीते जी गर हुझसे मीठी बातें ना कर सके ,
बाद मरने के मेरे तुम , 
अश्क़ बहाओ भी तो क्या।
हर पल ये एहसास होता है के मैं तो तन्हा हूँ ,
द मरने के मेरे तुम पास आओ भी तो क्या।
अपने
वक़्त से नाकारा रूठा-रूठा सा एक लम्हा हूँ।
बा वीराने में एक दिन 

चुपके से बहार आई

,
जीने का मक़सद देकर वो 

मुझको जीना सिखलाई। 

लना था ,

तप्त रेत मेँ भी कांटे थे 
पर मुझको तो

बाद मरने के मेरे तुम खुशी में शामिल हुए तो क्या।

शम्मा बनकर महफिल में , मुझको तो बस 

जचलना था।
बाद मरने के मेरे , चारागर बनके आओ तो क्या।
जीने मरने की कसमों के संग मेरे तो जुड़ गए ,

१८/१०/२००८
अपनी नफ़रत देकर मुझको , राह अपनी मुड़ गए।
बाद मरने के मेरी तस्वीर से प्यार करो तो क्या।


उत्तम पाल

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