कैसे जग को बताउ मैं
मेरे अन्दर कि उत्थल-पूत्थल को
मैंने गढ़ है अपने जीवन को
अकेली खड़ी खूद को रासती
एक अनजाना रि”ता निभाती
दूर बैठे इस रि”ते ने
हर बार मेरे होने का अहसास को
धर्म से जोड़ा
मेरे अकेले से जोड़ा
वादा होता रहा बराबरी के
दर्द देता रहा
मुझसे मुझको छिन्ने के
पर मैं अनजाने रि”ते
क्यों निभा रही?
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