आज खगेंदर ठाकुर जी ने मुझे फोन पर कहा की मेरे माध्यम से नेट
पर नये साल की शुब्कामना के साथ मेरे साहित्यक दोस्तों को ये
आग्रह कर दे की नये साल में नया कर की इन जालिमो से मुक्ति
दिलाय
खगेंदर ठाकुर जी माध्यम से एक कविता है
शासन का डंडा घूम रहा है
आसू गैस निरंतर टूट रहा है
जनता का धैर्य आतुत रहा है
जनतंत पसीना घुड रहा
युवाओ का गुश फुट रहा है
सत का भ्रम अब टूट रहा है
दमन का भी तो
हम टूट रहा है संसद को तो वह कर छुट रहा है
सरकार की हवा भूल रही है उसकी धिग्धि बंधी
साँस भी फुल रही है
प्र्त्येछ पूंजी निवेश में
सुब कुछ भूल रही है
ओबामा संग
भरत माता को
हुल रही है
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