तमसिल
मुझको भी तरकीब सीखा कोई यार जुलाहे !
अक्सर तुझको देखा है की
ताने बुनते जब कोई टूट गया
या ख़त्म हुआ
फिर से बांध के और सिरा कोई जोड़ के
उसमें आगे बुनने लगते हो,
तेरे इस ताने में,
लेकिन एक बार भी
गाँठ गिरह बुनकर की देख नहीं सकता है कोई,
मैंने तो एक बार बुना था
एक ही रिश्ता,
लेकिन उसकी सारी गिरहें,
साफ़ नज़र आते हैं
मेरे यार जुलाहे !-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें