शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

हर कोई को हक है



तमसिल  

हर कोई को हक है
अपनी जिंदगी जीने
दिल लगाने और मुस्कुराने का
दर्द क्यों उभरता है मेरे सीने का

हर कोई को हक है
अपने फैसले लेने
सपने सजाने और दुनिया बसाने का
हौसला क्यों टूटता है मेरे जीने का

हर कोई को हक है
अपने लिए सोचने
समझने और फिक्र करने का
दिल क्यों करता है जहर पीने का

हर कोई को हक है
अपने हुस्न पे इतराने
खिलखिलाने और गुनगुनानेे का
चैन क्यों खोता है दिन रात का  
           30.06.2011




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