शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011
गुरुवार, 7 अप्रैल 2011
सरहुल
आलोका
मांदर की थाप
हडिया
झूमर
और सरई फूल
आया प्रकृति परब सरहुल
सरई का सुगंध
जंगल- जंगल
बोने- बोन
और खेत- खलिहान
सब मस्ती में मग्न
उल्लास
भक्ति
और प्रेम
आस्था के कई रंग
प्रकृति के संग
शुद्ध हवा के झोंके
रंगबिरंगे फूल
आया प्रकृति परब सरहुल
मंगलवार, 5 अप्रैल 2011
खामोश अंधेरा
खामोश अंधेरा
आलोक
आज शहर की रात गहरी है
खामोश अँधेरा है
रात रुक गई है
लग रहा है
कल का सूरज
आश्मान में आयगा भी की नहीं
उस घर जहा
कल तक सपने बुने जाते थे
जहाँ
आज सपने लुटते हुए देखा है
वर्सो लग गए थे
आसियान बने में
पल में मिटटी में
बदल दिया
उनके जहा को
आज उनके जहा
अँधेरा है
कल का सपना
बदल गया है
पल में आपने
बेगाने हो गए है
आज शहर की रात गहरी है
खामोश अँधेरा है
रात रुक गई है
लग रहा है
कल का सूरज
आश्मान में आयगा भी की नहीं
उस घर जहा
कल तक सपने बुने जाते थे
जहाँ
आज सपने लुटते हुए देखा है
वर्सो लग गए थे
आसियान बने में
पल में मिटटी में
बदल दिया
उनके जहा को
आज उनके जहा
अँधेरा है
कल का सपना
बदल गया है
पल में आपने
बेगाने हो गए है
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