शनिवार, 20 नवंबर 2010

लगा है पहरा हवेली में (अलोका )

यह कविता शाहिद अख्तर की लिखी कविता हवेली पर प्रतिक्रया हैं
लगा है पहरा हवेली में
तैनात हरा, गैरूवा झण्डे के संग
चारों ओर शब्दों की वार
जंग है किसी के दिल में
तो जूनन भी उसी के पास
दोनो है माटी के लाल
रंग लाल से हो रहा प्यार
सर जमीन के टुकडे
बांट रहे
उपरवाला के नाम
न वहां राम रहेगा
न रहीम
इंसानियत नहीं
राजनीति
बांट रहीं जमीन
लगा है पहरा आपकी हवेली पर 

जनसंख्या बढ़ा कि

 अलोका रांची 








जनसंख्या बढ़ा कि
जंगल पहाड़ उड़ा
काला रोड बढ़ा कि
जवानी उड़ी
गांव उड़ा।
कानून बना कि
बिरान खेत सुखा।
विकास बढ़ा कि
बस्ती टुटा
मनरेगा आया कि
झगड़ा बढ़ा
पूंजी बढ़ा कि
दिल्ली भागा।
नेता बना कि
गांव को बेचा

सोमवार, 1 नवंबर 2010

पानी

पानी
फरीद खां
खबर आई है कि कुएँ बंद किए जा रहे हैं,
जहाँ से गुज़रने वाला कोई भी राहगीर,
किसी से भी पानी माँग लिया करता था।

वैज्ञानिकों के दल ने बताया है,
कि इसमें आयरन की कमी है,
मिनिरलस का अभाव है,
बुखार होने का खतरा है।

अब इस कुएँ के पानी से,
सूर्य को अर्घ्य नहीं दिया जा सकेगा,
उठा देनी पड़ेगी रस्म गुड़ और पानी की।

सील कर दिये कुएँ,
रोक दी गई सिचाई।

सूखी धरती पर,
चिलचिलाती धूप में बैठी,
आँखें मिचमिचाते हुए अम्मा ने बताया,
चेहरे से उतर गया पानी,
नालियों में बह गया पानी,
आँखों का सूख गया पानी,
प्लास्टिक में बिक गया पानी।