शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

पूरा- पूरा चाँद

पूरा- पूरा चाँद
अलोका

निकला है इस शहर में
अपनी रोshनी बिखरते
कुछ कह रहा अंधेरे से
हर कण रोshअनी की
मेरे अंगों को छूते हुए
पहुंचा रहा
अहसास तुम्हारे तक
पूरा पूरा चांद
आसमान मे छाया आज
चांदनी की इस रो”ानी से
रौ”ान होता वह अहसास
मैं महसूस करने लगी
मोबाइल नेटवर्क साथ
अंधेरा आज नेटवर्क की तरह
आपके करीब ले आया
पूरा- पूरा चांद
आया है
मेरे घर
तेरा पैगाम लेकर
तेरा एहसास लेकर।
पूरा- पूरा चांद
आया है आज

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