मंगलवार, 4 नवंबर 2008

दिल्ली में हैं झाड़खण्ड। (अलोका )

श्रमशील
दिल्ली में
ठोकर खा रहे
फुटपाथ पर
झाड़खण्ड का भविष्य
घर छोड.ने पर किया मजबूर ।
गिरतेेे- पड़तेे जी रहे है।
अपनो से दूर
गुम हो रहे है सपने ।
दिल्ली के गलियों में
अपनी ही लोगो से
लूट रही परम्परा; संस्कृति
बस बाजार में।
खो जाती है बड़े नगरो में
बेचती है अपना श्रम
पुछते है आस-पास के लोग
कहते है ............
दिल्ली में है झाड़खण्ड।

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